दिवाली में इस सरल विधि से होंगी देवी लक्ष्मी प्रसन्न, होगी धन-सम्पदा की वर्षा
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दीपावली सनातनी हिंदुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है। इस दिन भगवान राम, रावण को परास्त कर माता सीता के साथ अयोध्या वापस लौटे थे। भगवान राम और माता सीता के आने के उपलक्ष में सारे अयोध्यावासियों ने अपने घर के बाहर दीप प्रज्वलित किए, उनका स्वागत किया और खुशी मना
दीपावाली के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है और महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। लोगों की मान्यता है कि महालक्ष्मी की पूजा करने से घर से दुख-दरिद्रता कम होती है। अधिकांश लोग मानते हैं कि महालक्ष्मी की पूजा जिस विधि-विधान से होनी चाहिए वह केवल धनवानों के लिए सम्भव है, यही कारण है कि गरीबों पर माता की कृपा नहीं बरसती है और वह गरीब ही रह जाते हैं।
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य महेश वर्मा बताते हैं कि देवी को खुश करने के लिए विशेष आडंबर की जरूरत नहीं। साधारण विधि-विधान से पूजा कर भी आप धन-सम्पदा की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न कर सकते हैं। वह बताते हैं कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। वह बताते हैं कि मेरे बताए विधि से यदि व्यक्ति माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करे तो गरीब आदमी पर भी महालक्ष्मी की असीम कृपा बरसेगी। महालक्ष्मी की पूजा करने की विधि बहुत ही सरल है आप महालक्ष्मी के श्री सूत्र मंत्रों का जाप करें इसकी शुरुआत धनतेरस से की जाती है और दीपावली तक 3 दिन इसका जाप सवेरे शाम करना चाहिए।
दीपावली के दिन सवेरे स्नान करने के बाद भगवान सूर्य को अर्ध देवे वह अपने कुल देवी देवता और पितरों का पूजन करें। अपने घर के उत्तर के भाग को वह पूर्व के भाग को साफ सुथरा रखें। अपने पूजा घर में लक्ष्मी सरस्वती और गणेश जी स्थापना करें, एक कलश में पान के पत्ते या आम के पत्ते रख कर उस पर एक नारियल रखें और उसपर रोली मोली चढ़ाएं।
महालक्ष्मी के श्रृंगार की वस्तुएं रखें धूप दीप जलाएं। शाम के समय प्रदोष काल में दीप करने के बाद घर के घर मुख्य द्वार पर दो दीपक जलाएं कम से कम रात्रि में सोते समय विशेष कर ध्यान रखें कि अपने घर के गैस के चूल्हे को बंद कर घर से बाहर जाने वाले पानी वाली नाली के समीप एक दीप जलाएं जो रात्रि के समय जलता रहे। रात्रि में सोने के पहले एकांत में महालक्ष्मी के बीज मंत्र “ॐ रीम श्रीम” का जाप करें। पूजा करते समय काला-नीला वस्त्र धारण न करें।
पूजा के समय आप का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिये। भगवान की मूर्ति पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। आप के पूजा का आसन उन या सूती कपड़े का होना चाहिए।