एकल जज के रैंक लिस्ट को दोबारा जारी करने के फैसले पर मद्रास हाईकोर्ट ने लगाई रोक
आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
मद्रास हाईकोर्ट ने आईआईटी-जेईई रैंक लिस्ट को दोबारा जारी करने के एकल बेंच के फैसले पर रोक लगा दी है। यह आईआईटी कानपुर को बड़ी राहत। आईआईटी कानपुर द्वारा एकल बेंच के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश हुलुवादी रमेश और न्यायाधीश दंडपानी की खंडपीठ ने कहा कि उन छात्रों को तरजीह दी जाए जिन्होंने न्यूमेरिकल वैल्यू में उत्तर तो दिया पर उसमें डेसिमल अंक का प्रयोग नहीं किया। खंडपीठ ने कहा कि परीक्षा का मूल्यांकन कर लिया गया है तो ऐसे में एकल बेंच के जज का आदेश अनुचित है।
चेन्नई मूल की सत्रह वर्षीय छात्रा एल. लक्ष्मीश्री की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश एस. वैद्यनाथन ने माना कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि 7 और 7.00 में कोई अंतर नहीं है। लेकिन जिन प्रतिभागियों ने परीक्षा पूर्व के निर्देशों की अक्षरश: पालना की है उनको वरीयता मिलनी चाहिए।
जज ने माना इस तरह रैंक सूची जारी करने से कुल चयनित प्रतिभागियों की संख्या प्रभावित नहीं होगी। बस अंतर केवल यह होगा कि उनका क्रम बदल जाएगा। 20 मई को आयोजित परीक्षा से पूर्व विद्यार्थियों को स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि सभी 8 सवालों के अंकों वाले जवाब दशमलव के बाद की दो संख्या तक लिखें। बहरहाल, परीक्षा के बाद आइआइटी कानपुर ने स्पष्टीकरण दिया कि अगर प्रतिभागी ने किसी प्रश्न के जवाब 11, 11.0 अथवा 11.00 लिखा है, तो तीनों सही माने जाएंगे।
आइआइटी कानपुर के इस स्पष्टीकरण पर ही याची ने सवाल उठाया है कि उन सभी प्रतिभागियों को एक श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए जिन्होंने परीक्षा पूर्व की निर्देशावली की पालना नहीं की है। याची की बात को सही मानते हुए जज ने 7 जून को अंतरिम आदेश में आइआइटी कानपुर को कहा था कि वह परीक्षा पूर्व के अनुदेशों के आधार पर ही मूल्यांकन करे।
मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता विजय नारायण ने कोर्ट को कहा कि परीक्षा के बाद जो रिजल्ट जारी किए गए हैं उससे विद्यार्थियों और अभिभावकों में संशय की स्थिति पैदा हो गई है। जब याची को उसके पसंद की सीट मिल गई है तो ऐसे में आदेश जरूरी नहीं। जिसके बाद खंडपीठ ने एकल जज के आदेश पर रोक लगा दी।