मानव पर सीधे प्रभाव वाले विषयों से दूरी चिंताजनक

सुष्मिता दास, आईएनएन, नईदिल्ली, @sushmi10d;

मौजूदा दौर में मीडिया राजनीति, अपराध, मनोरंजन से जुड़े समाचारों को काफी प्रमुखता से दिखाता और छापता है। पर मानव जीवन को सीधे प्रभावित करने वाले पर्यावरण व जलवायु, खेत-खलिहान, स्वच्छता जैसे मुद्दे अभी भी हासिए पर ही दिखते हैं।
यह विषय संवेदनशील है और चिंताजनक भी। पर क्या ऐसा मीडिया संस्थान जानबूझकर करते हैं अथवा अनजाने में या फिर कुछ और वजह है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट और डाउन टू अर्थ मैगजीन की ओर से अमृतसर स्थित खालसा कॉलेज में हुए कांफें्रस में इस पर प्रकाश डालते हुए जनसत्ता के मुख्य संपादक मुकेश भारद्वाज ने कहा कि मुख्य धारा के अखबार होने के कारण हमारी प्राथमिकता उन समाचारों को प्रमुखता देने की होती है, जिनमें पाठक की रुचि हो। इसीलिए हम ऐसे मुद्दों को अधिक स्थान व महत्व देते हैं, जिनका पाठक वर्ग अधिक हो। राजनीति व अपराध के खबरों को प्रमुखता देने के पीछे मुख्य कारण यही है।

यह वाकई बड़ा सवाल है कि क्या मीडिया पाठक की रुचि का ध्यान रखने के कारण पाठकों से जुड़ी इतने महत्वपूर्ण विषयों से दूरी बनाए हुए है। इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि समाचार माध्यमों को दिशा पाठक देता है अथवा पाठकों को समाचार माध्यम दिशा दिखाते हैं?

भारद्वाज कहते हैं कि मीडिया के रूप में हमारी यह जिम्मेदारी बनती तो है कि पर्यावरण जैसे मुद्दे को भी प्रमुखता से छापें व दिखाएं। यह आवश्यक नहीं है कि हम ऐसे समाचारों को प्रमुख पृष्ठों पर ही छापें, लेकिन छापें जरूर। पत्र-पत्रिकाओं में छपे हर लेख को पाठक गंभीरता से पढ़ता है। चाहे वह समाचार पत्र के किसी भी पन्ने पर हो। वर्तमान समय में मीडिया प्रतिष्ठानों का दायित्व केवल ऐसे समाचारों के छापने भर का ही नहीं है। बल्कि मानसिकता बदलनी होगी, ताकि पाठकों को इन मुद्दों में रुचि पैदा हो सके। यह शुरुआत मीडिया संस्थानों के बजाय शैक्षणिक संस्थानों को करनी चाहिए। मीडिया की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को यह सिखाने की आवश्यकता है कि वे राजनीति, अपराध व अन्य खबरों के साथ ही पर्यावरण संबंधित विषयों को भी प्रमुखता से जानें और उस पर गहन अध्ययन व शोध करें, ताकि पत्रकारिता के पेशे में आने पर उन्हें इन विषयों पर काम करने का अवसर दिया जा सके। आज विज्ञान या विशेषज्ञ पत्रकारों की कमी है। समाचार माध्यमों में इन मुद्दों पर समाचारों की कमी का एक कारण यह भी है। सूचना क्रांति के इस युग में हमें गांवों की खबरों को ग्लोबल स्तर पर दिखाए-पढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
सवाल यह भी है कि क्या मीडिया में ऐसे मुद्दों को उठाने और इन पर लिखने वालों की कमी है? दैनिक भास्कर रांची के ब्यूरो चीफ मनोज कुमारेंद्र ने कहा कि कौन सा समाचार प्रमुखता से स्थान पाएगा, यह उस समाचार की विषय वस्तु और महत्व पर निर्भर करता है। समाचारों को प्रमुखता दिलाने के लिए समाचार का गठन मायने रखता है। पर्यावरण विषय की गंभीरता को समझते हुए इससे जुड़े समाचारों को ठोस व रुचिकर ढंग से लिखा जाना चाहिए। मीडियाकर्मियों को शब्दों की बाजीगरी आनी चाहिए, ताकि वे समाचार को प्रभावशाली बना सकें और उन्हें समाचार पत्र या समाचार माध्यम में प्रमुख स्थान मिल सके। पर्यावरण से जुड़े विषयों पर काम करने वाले पत्रकारों को भी ऐसे ही काम करने की जरूरत है।
खालसा कॉलेज के पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों को पत्रकारिता के गुर बताते हुए कुमारेंद्र ने कहा कि हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जिस विषय या समाचार पर हम काम कर रहे हैं, उसे तैयार करने में गहन अध्ययन व प्रयास दिखे। आजकल लोग इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों से समाचार बनाने में लगे रहते हैं, जबकि हमें जमीनी स्तर पर विषयों पर काम करने की जरूरत है। पर्यावरण भी उन विषयों में से एक है, जिस पर पत्रकार को यथार्थपरक कार्य करना चाहिए।
अपने अनुभव को साझा करते हुए नवभारत टाइम्स, लखनऊ के स्थानीय सम्पादक सुधीर मिश्रा ने कहा कि एक बेहतर पत्रकार को तैयार करना संपादक की प्रमुख जिम्मेदारी होती है। आज के दौर में संपादक का काम एक बेहतर पत्रकार बनाने के साथ उसमें सशक्त नेतृत्व की क्षमता विकसित करना भी है। तब हम आने वाली पीढ़ी के पत्रकारों को स्वतंत्र पत्रकारिता की राह पकड़ा सकेंगे। अच्छा पत्रकार वही है जो उन विषयों को प्रमुखता नहीं देता जिसे लोग अधिक पसंद करते हैं, बल्कि वह है जो नई चीजों पर ध्यान दे और उसे पाठकों के सामने लेकर आए। पाठकों को नए व रोचकों तथ्यों से अवगत कराना ही श्रेष्ठ पत्रकारिता है।

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