प्रलोभन दे रहा है जीएम बीज के उपयोग को बढ़ावा

आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial

म लागत में अधिक पैदावार का प्रलोभन देश के किसानो को जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) बीजों के प्रयोग को बढ़ावा देने का प्रमुख कारण है। इन्ही झूठे वादों का प्रलोभन देकर कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां अपने नुमाइंदों के जरिए जेनेटिकली मोडिफाइड बीजों के प्रयोग को बढ़ावा देने में लगी हुई हैं। जो देश के पर्यावरण और देश में रह रह रहे जिव जन्तुओ के लिए खतरे की घंटी है। इसके बारे में सरकार और प्रसाशन की चुप्पी और निष्क्रियता हमारे लिए खतरे की घंटी है।

इस पुरे प्रकरण की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी लेकिन तब स्थिति कुछ और थी। उस वक़्त किसानो को इनसब चीज़ो पर इतना भरोसा नहीं था। लेकिन जैसे जैसे देश में कृषि के हालात बिगड़ते गए किसान इन झूठे वादों पर भरोसा करने लगे। आज आलम ये है की पिछले कुछ सालों में जीएम बीजों के उपयोग में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2017 में 1.14 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्रफल में जीएम बीजों से खेती की गई।

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत जीएम बीजों से फसल उत्पादन में पांचवें नम्बर पहुंच गया है। जीएम बीज से फसल उत्पादन में अमरीका विश्व में पहले नम्बर पर है। आईएसएएए की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर के किसानों ने पिछले साल 18.98 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि में जीएम बीजों से फसलों का उत्पादन किया। भारत में जीएम बीजों के उत्पादन में केवल बीटी कॉटन के उत्पादन को ही सरकारी मान्यता मिली है। लेकिन देश के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार के जीएम बीजों को व्यवहार में लाकर फसलों का उत्पादन किया जा रहा है। जिनमें जीएम बैगन, सोयाबीन, खीरा आदि प्रमुख हैं।

तमिलनाडु के संगठन पूलगिन नन्बरगन जिसका अर्थ हिंदी में पृथ्वी मित्र होता है के पर्यावरण कानूनी सलाहकार समिति के सदस्य वेट्रीसेल्वम का कहना है कि हम अभी भी हरित क्रांति के दुष्प्रभाव से नहीं उबरे हैं और सरकार व वैज्ञानिकों के नए शोधों को व्यवहार में लाने की उदार नीति से हम अपने भविष्य को खतरे में डाल रहे हैं। जबसे सरकार व प्रशासन ने बीटी कॉटन के जीएम बीज को प्रयोग को हरी झंडी दी है तबसे कई मल्टीनेशनल कंपनियों ने इसे कमाई का माध्यम बना लिया है।

राशि सीड जो एक विदेशी कंपनी है का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये उत्पादन हमारे पर्यावरण को बिगाडऩे के साथ इसमें रहने वाले जीवों के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के बीजों को व्यवहार में लाने से न केवल हमारी मिट्टी खराब होती है बल्कि पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचता है। वेट्रीसेल्वम का कहना है बीटी कॉटन को उगाने वाले किसान कई प्रकार की एलर्जी व शारीरिक विकार के शिकार हो जाते हैं।

बीटी कॉटन को तैयार करने के बाद इससे बने कचरे से जानवरों की मौत के मामले भी सामने आए हैं। उनका कहना है कि सरकार ने औपचारिक शोध के बाद इसके उत्पादन पर स्वीकृति तो दे दी पर इसके दुष्प्रभावों के बारे में कोई शोध नहीं किया और न ही इस ओर उसका ध्यान जा रहा है। इन कुप्रभावों के बारे में ज्यादातर शोध गैर-सरकारी संगठनों ने अपने शोध नतीजों को संबंधित प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत भी किया पर उस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। बीटी कॉटन के उत्पाद से तेल निकाल कर उसे गैरकानूनी तरीके से बाजार में बेचा जाता है। जबकि सरकार ने जीएम बीज से किसी भी खाद्य पदार्थ के उत्पादन पर प्रतिबंध लगाया है।

लेकिन इन प्रयासों की तरफ सरकार व प्रशासन की निगाह अब तक नहीं गई है। वेट्रीसेल्वम ने बताया कि कई जीएम उत्पादों को चोरी से आयात कर भारतीय बाजारों में बेधड़क बेचा जा रहा है जिस पर प्रशासन का ध्यान अब तक नहीं गई है। लैटिन अमरीका में उगाए जाने वाले कॉर्न, जीएम केला व कई ऐसे उत्पाद हैं जिन्हें भारत में बेचा जा रहा है। उनका कहना है कि एक शोध के मुताबिक इन जीएम बीजों की पहली पीढ़ी से ही बेहतर उत्पादन की अपेक्षा की जा सकती है लेकिन इसकी दूसरी व तीसरी फसल में वह दम नहीं रहता। इन बीजों पर शोध कंपनियों का पेटेंट होता है इसलिए इसके दुबारा प्रयोग पर आपको उनके हिसाब से कीमत चुकानी होती है।

इंडिया फॉर सेफ फूड के संयोजक रोहित पारेख ने इस विषय के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए इन्फोडिया टीम को बताया की भारत में काफी सालों से इन बीजों को व्यवहार में लाया जा रहा है। इसके लिए पहले किसानों को यह कहकर भ्रमित किया गया कि इससे काम लागत पर फसल की पैदावार बढ़ेगी। इन फसलों पर किसानों को पेस्टिसाइड, यूरिया व अन्य उत्पादों को व्यवहार में नहीं लाना होगा। ऐसा केवल शुरुआती दिनों में देखने को मिला अब उन्हें फसलों के उत्पादन में फिर से उर्वरक, पेस्टिसाइड का प्रयोग करना पड़ रहा है।

उन्होंने बताया कि हाल ही में गुजरात में जीएम सोयाबीन का उत्पादन करते कई किसानों को पकड़ा गया। भारत में सबसे ज्यादा जीएम बीजों का आयात अमरीकी देशों से किया जा रहा है। यही नहीं ऐसे कई जीएम खाद्य उत्पाद हैं, जिन्हें धड़ल्ले से भारतीय बाजारों में बेचा जा रहा है लेकिन उस पर सरकार की नजर अब तक नहीं गई है। उनका कहना है कि पिछले 20 सालों में अमेरिका में ऑटिज्म, कैंसर, आदि बीमारियों से ग्रस्त लोगों की संख्या बढ़ी है। ऐसा अंदेशा जताया जा रहा है कि इसकी वहज जीएम बीज हैं। हालांकि किसी वैज्ञानिक शोध ने इस बात की पुष्टि नहीं की है।

तमिलनाडु में बीटी कॉटन का धड़ल्ले से उत्पादन किया जाता है जो जेनेटिकल मोडिफाइड बीज से उत्पन्न होता है। हालांकि यहां के किसान व कई गैर-सरकारी संगठन इसका विरोध कर रहे हैं पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जेनेटिकली मोडिफाइड बीटी कॉटन उत्पादन का एक कारण यह भी है कि इसे सरकारी मान्यता प्राप्त है। साथ ही इसे कई शोध संस्थाओं से मान्यता भी मिली हुई है।

जीएम बीजों के पीछे उन्हें एक गहरी साजिश नजर आती है। इसकी शुरुआत काफी समय पहले से हो चुकी है पर प्रशासन व आम जनता इसे लेकर अब तक जागरूक नहीं हुए हैं। उन्होंने बताया कि मेनफेंटो फर्म नाम की एक कंपनी है जो किसानों को अपने स्थानीय एजेंटों द्वारा बरगला कर उन्हें जीएम बीजों के प्रयोग के लिए उकसाती है।

इसके पीछे कई मल्टीनेशनल कंपनियां और कुछ भारतीय एजेंट्स के शामिल होने की आशंका है। वह अपने कार्यक्रम के तहत राज्य के हर जिले में जाकर किसानों से मिलते हैं और उन्हें जीएम बीजों के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करते हैं ताकि वे विदेशी कंपनियों के झांसे में आकर अपने परिवेश और मानव जाति के लिए हानिकारक उत्पाद न पैदा करें। किसान नेता पी. अय्याकन्नू

 

तमिलनाडु सरकार ने कभी भी जीएम बीजों के व्यवहार का सर्मथन नहीं किया है। बीटी कॉटन के जीएम बीज को भले ही सरकार ने वैध घोषित किया हो पर तमिलनाडु सरकार की ओर से इन किसानों को किसी प्रकार की सहायता या सब्सिडी नहीं दी जाती।

सरकार ऐसे प्रयासों पर रोक लगाने के लिए विभाग व स्वयंसेवी संगठनों द्वारा जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन समय-समय पर कराती रहती है। कई स्वयंसेवी संगठन ने जीएम बीज से तैयार सरसों तेल के उत्पादन और केंद्र सरकार को इसके प्रयोग को नियमित करने पर रोक लगाने की मांग की थी। जिसके बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने अपनी ओर से पत्र लिखकर केंद्र सरकार को इस बाबत सूचित कर दिया था। गगनदीप सिंह, कृषि सचिव, तमिलनाडु

 

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