हिन्दी भाषा भारत की आत्मा है 

एसआरएम में हिन्दी दिवस समारोह

आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial 

भाषा केवल अभिव्यक्ति नहीं हमारी सांस्कृतिक चेतना का केंद्र है। यह राष्ट्र और राष्ट्रवाद के प्रति लगाव की पहचान है। इतिहास साक्षी है कि उन्नत राष्ट्र केवल तकनीक से नहीं अपनी भाषाओं की समृद्धि से भी पहचान बनाते रहे हैं। हमें भी हिंदी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं के प्रति लगाव से देश को भावनात्मक रूप से मजबूत करना चाहिए। तमिल हो या अन्य भारतीय भाषाएं, ये भारत की विविधताओं की खुशबू से भरा गुलदस्ता है।

इनकी विविधताओं में भी हजारों साल की एकता की संस्कृति बसी हुई है। हम संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को इतनी समृद्ध करें कि हिंदी दिवस मनाने की जरूरत ही न रह जाए। हमारी भाषाएं हमारी भावानाओं में रची बसी रहे। एसआरएमआईएसटी के हिंदी विभाग और सृजन लोक पत्रिका आरा द्वारा आयोजित हिंदी दिवस समारोह के शुभारंभ के पावन अवसर पर एसआरएमआईएसटी के कुलपति प्रो. संदीप संचेती ने ये विचार व्यक्त किए। वही मुख्य अतिथि प्रो. बी.एल. आच्छा ने कहा तकनीक की दुनिया भौतिक विकास का परचम लहरा सकती है। भावों की दुनिया के बगैर जीवन सूना सुना है।

इतनी समृद्धि के बाद भी तनाव और अकेलापन शोर मचा रहा है। विभिन्न भाषाओं में रचा जा रहा साहित्य केवल सांस्कृतिक पहचान ही नहीं बनाता वह हमें अपनी जमीन और संस्कृति से जोड़ता भी है। तकनीक का विकास सभ्यता की जरूरत है पर प्रेम व करुणा जैसे भाव आदमी को आदमी बनाए रखते हैं। आज वैज्ञानिकों ने न जाने कितने रसायन खोज निकाले पर प्रेम से बड़ा कोई रसायन नहीं है। वही मनुष्यता का संस्कार है। 

उन्होंने कहा शांति और मानवीय रिश्तों का सहकार है। साहित्य आदमी की पीड़ाओं, सपनों, संघर्षों व क्रांतिरथ को न केवल अभिव्यक्ति देता है बल्कि संघर्षों में जीने की ताकत भी देता है। इसलिए हम हिंदी और भारतीय भाषाओं को व्यवहार में समृद्ध करें ताकि हमारी राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना देश को मजबूत बनाए। 

विशेष अतिथि राजस्थान पत्रिका चेन्नई के संपादकीय प्रभारी पी.एस. विजयराघवन ने कहा नई पीढ़ी में साहित्य के प्रति अनुराग प्रशंसनीय है। जो प्रतियोगियों ने हिंदी के नामवर कवियों की कविताओं का पाठ किया है और जिन्होंने सुना है वे खुद ही पहचान जाएंगे कि हमारी भावनाओं के कितने करीब हैं। हम प्रादेशिक भाषा को व्यवहार में लाएं पर राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा को संपर्क भाषा के रूप में अपनाकर मिशाल पेस करें।

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