उपराष्ट्रपति ने कहा नए भारत का निर्माण एक समावेशी प्रक्रिया है

आईआईएन/दिल्ली, @Infodeaofficial

उपराष्ट्रपति  एम वेंकैया नायडू ने कहा कि नए भारत का निर्माण एक समावेशी प्रक्रिया है। उन्‍होंने लोगों से  इसे प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करने के लिए कहा।

  शिमला स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी द्वारा नई दिल्ली में आयोजित छठा रवींद्रनाथ टैगोर स्‍मृति व्‍याख्‍यान देते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने नए भारत का दृष्टिकोण रेखांकित किया है और 2022 तक नये जीवंत भारत का निर्माण करने के लिए  प्रयास किए जा रहे हैं।

 यह देखते हुए कि इस मिशन का उद्देश्य गरीबों और पददलित तबकों का उत्थान था नायडू ने कहा कि कि यह तभी संभव है जब 1.25 अरब भारतीय संकल्पित भारत, सशक्त भारत,  स्वच्छ भारत  और  श्रेष्ठ भारत का निर्माण करने के प्रयास में शामिल हों।

रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा साझा इसी प्रकार के विजन का स्‍मरण करते हुए श्री नायडू ने उनका उद्धहरण देते हुए कहा कि भारत में वास्‍तविक समस्या यह है कि हमें पूरे देश को अपना बनाना चाहिए। यह निर्माण ऐसा होगा जिसमें सभी समुदाय और व्यक्ति भागीदारी करेंगे।

यह देश के लिए बहुत गर्व और गौरव का दिन होगा यह जब हम 2022 में अपनी आजादी के 75वें साल का जश्न मनाएंगे। उन्‍होंने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि नया भारत नवाचार और ज्ञान का केंद्र होगा, जिसमें युवा डिजिटली रूप से सशक्त उद्यमी, टेक्नोक्रेट, वैज्ञानिक और शिक्षाविद शामिल होंगे और जलवायु परिवर्तन से लेकर कृषि उत्पादकता बढ़ाने जैसी विभिन्न समस्याओं के स्वदेशी समाधान खोजने के लिए मिलकर काम करेंगे।

रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित संस्थानों का उल्लेख करते हुए उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि शांति निकेतन शिक्षा को जीवन से जोड़ने, छात्रों को प्रकृति से जोड़ने और सामंजस्यपूर्ण तथा समग्र व्यक्तित्व का विकास करने का एक प्रयोग था। हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में सहजता, रचनात्मकता और सौंदर्य संवेदनशीलता के घटकों को शामिल करने की जरूरत है। रवींद्रनाथ टैगोर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर का कालातीत दृष्टिकोण भारत और विश्‍व के लिए आज भी बहुत प्रासंगिक है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर ने शिक्षा, प्रकृति, राष्ट्रवाद, अंतर्राष्ट्रीयतावाद, नारीवाद, धर्म, भाषा, जाति व्यवस्था जैसे विभिन्न विषयों पर अपने विचार और अपने दृष्टिकोणों का वर्णन किया है जो उनकी बहुआयामी प्रतिभा की विस्‍तृत सीमा को दर्शाता है। वे वास्तव में एक विश्व कवि थे जो प्राचीन वैदिक ऋषियों के सांचे में ढले थे और उन्‍होंने हमें “वसुधैव कुटुम्बकम” का सार्वभौमिक दृष्टिकोण प्रदान किया।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि गुरूदेव के बुद्धिमत्तापूर्ण परामर्श पर ध्यान देना चाहिए कि हम किस प्रकार महान परंपराओं से जुड़कर भारतीय शिक्षा को पुनर्जीवित कर सकते हैं। उन्‍होंने सदियों पुरानी भारतीय सभ्यता के मूल्यों, परंपराओं और लोकाचारों के संरक्षण और उन्हें बढ़ावा देने का आह्वान करते हुए सांस्कृतिक पुनरुत्थान की जरूरत पर जोर दिया। उन्‍होंने उल्‍लेख किया कि रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी के ग्राम स्‍वराज्‍य के दृष्टिकोण को साझा किया और वास्तविक आजादी के लिए ग्रामीण क्षेत्र के विकास को महत्‍वपूर्ण कदम बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि टैगोर के लेखन में “रचनात्मक कार्यक्रम” और ग्रामीण उत्‍थान या ग्रामीण स्वराज की गूंज सुनाई देती है।

 उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर ने वैज्ञानिक अनुसंधान की वकालत की जिससे ग्रामीणों के जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार लाने में मदद मिले। चीजों में बदलाव लाने का एकमात्र तरीका यह है कि उपेक्षित गांव में नए अर्जित ज्ञान की अर्थव्‍यवस्‍था कृषि, स्‍वास्‍थ्‍य और अन्‍य सभी रोजमर्रा के विज्ञान में लागू की जाए।

इस अवसर पर उपराष्‍ट्रपति ने प्रो. एम. परांजपे द्वारा लिखित पुस्तक ‘स्वामी विवेकानंद-हिंदुत्‍वं और आधुनिकता की ओर भारत का मार्ग’ का विमोचन किया। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी के अध्यक्ष  प्रोफेसर कपिल कपूर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य-सचिव, श्री सचिदानंद जोशी, आईआईएएस के निदेशक प्रोफेसर मकरंद आर परांजपे, आईआईएएस के सचिव डॉ वीके तिवारी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

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