आईआईएन/नई दिल्ली, @Infodeaofficial
हिन्दी गैर फीचर फिल्म ‘‘ब्रिज’’ के निर्देशक श्री विक्रमजीत गुप्ता ने कहा, ‘भारत में लघु फिल्में और ओटीटी प्लेटफॉर्म की फिल्मों को दिखाने के लिए समर्पित टीवी चैनलों की जरूरत है।’ आजकल लघु फिल्मों के लिए कई महोत्सव आयोजित किये जाते हैं।
सोशल मीडिया के कारण भी लघु फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ रही है। लेकिन इनके मुद्रीकरण के लिए हमें अन्य तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है। श्री विक्रमजीत गुप्ता आज पणजी में 50वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के मीडिया सम्मेलन में भाग ले रहे थे।
अपनी फिल्म के बारे में श्री विक्रमजीत गुप्ता ने कहा कि यह फिल्म एक टैक्सी ड्राइवर और एक मूक लड़की के बंधन के बारे में है। फिल्म के आगे बढ़ने पर पता चलता है कि लड़की मूक नहीं है। उन्होंने कहा कि मुंबई नगर का एक जीवंत नाइटलाइफ है। यह शहर कभी सोता नहीं है। मैं ऐसे कई लोगों से मिला हूं, जो रात में सड़कों पर सोते हैं।
जो लोग रात में फुटपाथ पर सोते हैं, उनमें एक प्रकार की असुरक्षा और खतरे की भावना होती है। क्या होगा यदि देह-व्यापार में लिप्त किसी व्यक्ति को सड़क पर एक छोटी लड़की मिलती है? क्या वह व्यक्ति उस लड़की की मदद करेगा या वह जानवर की तरह व्यवहार करेगा? इस विचार ने मुझे यह फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया।
क्या खुद की पटकथा पर फिल्म बनाना बेहतर है? इस सवाल का जवाब देते हुए फिल्म निर्माता ने कहा कि यह आवश्यक नहीं है लेकिन जब भी कोई व्यक्ति पटकथा लिखता है तो वह फिल्म की कल्पना जरूर करता है।
फंडिंग के सवाल पर श्री विक्रमजीत गुप्ता ने कहा कि आपको बस लोगों तक पहुंचने की जरूरत है। सभी दरवाजों पर दस्तक दें और उन्हें अपनी कहानी देखने के लिए अनुरोध करें। कोई दूसरा रास्ता नहीं है। मैं सम्पन्न परिवार से नहीं हूं कि मैं स्वयं ही फिल्म का निर्माण कर सकूं।
ब्रिज
यह एक विशेष प्रकार की दोस्ती की कहानी है। यह दोस्ती एक टैक्सी ड्राइवर और एक मूक लड़की के बीच में विकसित होती है। यह मुंबई की कहानी है। टैक्सी ड्राइवर विनोद देह-व्यापार के धंधे से भी जुड़ा हुआ है। उसे मुंबई में एक युवा व मूक लड़की मिलती है। रज्जो एक वेश्या है, जो टैक्सी में लड़की की मौजूदगी से चिढ़ी हुई है, क्योंकि इससे उसकी रात की कमाई में नुकसान हो रहा है।
दोनों लड़की के परिवार को ढूंढ़ने का निश्चय करते हैं। लड़की उन्हें कोलीवाड़ा के पास के एक पुल की तस्वीर दिखाती है परन्तु जब वे वहां पहुंचते हैं तो लड़की अपने घर को ढूंढ़ नहीं पाती है। अगली सुबह लड़की कार से लापता हो जाती है।
कुछ महीनों के बाद विनोद को वह लड़की फिर से दिखाई पड़ती है और वह उसका स्लम तक पीछा करता है। विनोद किसी अशुभ समाचार का अनुमान करता है, लेकिन अंतिम रहस्योद्घाटन से एक विशेष प्रकार की दोस्ती की शुरूआत होती है।
विक्रमजीत गुप्ता को फीचर फिल्में, वृत्तचित्र, स्वतंत्र फिल्में, वृत्तचित्र-नाटक, स्पाट और कॉरपोरेट फिल्में बनाने का 15 वर्षों का अनुभव है। उन्होंने दुनिया के कई टीवी नेटवर्कों और प्रोडक्शन हाऊसों में काम किया है और वन्यजीव वृत्तचित्रों पर शोध किया है।
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