भारतीय भाषाओं की जमीन और भाव-भूमि एक

राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के शताब्दी समारोह में किया हेरीटेज साइट का उद्घाटन, बोले: राज्य की मुख्य भाषा के अलावा अन्य राज्यों की भाषाओं को सीखने में भी दिखाएं उत्साह

आईएनएन/नई दिल्ली @Infodeaofficial 

मारी भारतीय भाषाओं की जमीन और भाव-भूमि एक है। इसी एकता को मजबूत बनाने का काम हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं को करना है। इस सोच के साथ महात्मा गांधी ने ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ की स्थापना की थी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने नई दिल्ली में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के शताब्दी समारोह पर संबोधित करते हुए यह कहा। उन्होंने कहा कि सभी भाषाओं की भाव—भूमि एक है। सुब्रमण्य भारती की देश प्रेम से भरी तमिल कविताओं की भावना पूरे देश में महसूस की जाती थी। इसी एकता को मजबूत बनाने का काम हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं को करना है। इस सोच के साथ महात्मा गांधी ने ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ की स्थापना की थी।

महात्मा गांधी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में स्थापित इस संस्था ने इस साल हिन्दी की सेवा के 100 वर्ष पूरे किये। महात्मा गांधी के बाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति और भारत-रत्न, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने इस सभा के अध्यक्ष का पद संभाला था। चेन्नई में स्थित ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ के परिसर के जिस भवन में गांधी जी ने, सन 1946 में प्रवास किया था, उसे नवंबर 2014 में ‘गांधी हेरिटेज साइट’ घोषित किया गया। उसके बाद उस भवन का पुनर्निर्माण करके पिछले वर्ष गांधी जयंती के दिन दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया गया।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘2 अक्तूबर से महात्मा गांधी की 150वीं जयंती समारोहों की शुरुआत होगी। इसी सप्ताह इन समारोहों के लिए ‘लोगो’ और ‘वेबसाइट’ को लॉन्च करने अवसर मिला। मैंने सुझाव दिया कि यह ‘वेबसाइट’ क्षेत्रीय भाषाओं में भी होनी चाहिए।’

राष्ट्रपति ने आह्वान किया कि देशवासी अपने राज्य की मुख्य भाषा के अलावा अन्य राज्यों की भाषाओं को सीखने में भी उत्साह दिखाएं। उन्होंने कहा कि जब कोई हिन्दी भाषी युवा, तमिल, तेलुगु, मलयालम या कन्नड भाषा सीखता है तो वह एक बहुत ही समृद्ध परंपरा से जुड़ जाता है। वह उस प्रदेश में अधिक प्रभावी ढंग से काम कर सकता है। यह जानकारी उसके व्यक्तित्व में एक नया पक्ष जोड़ने के साथ-साथ उसके लिए विकास के नए अवसर भी पैदा कर सकती है। ऐसे अनेक वैज्ञानिक शोध सामने आ रहे हैं, जिनके अनुसार, एक से अधिक भाषा सीखने वाले व्यक्ति की मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है। अधिक भाषाएं सीखने से सोच का दायरा भी बढ़ता है, दृष्टिकोण और अधिक व्यापक होता है। भारत जैसे बहुभाषी देश में यह तथ्य और अधिक प्रासंगिक हो जाता है।

उन्होंने कहा कि देश की भावनात्मक एकता को मजबूत बनाने में ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा’ जैसे संस्थानों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। भाषाएं लोगों को जोड़ती हैं। भारतीय भाषाओं ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को सँजोकर रखा है। भारत में अनेक भाषाएं और बोलियां हैं। उन सभी का अपना अपना स्वरूप और सौन्दर्य है। यह विविधता, हमारी संस्कृति को उदार और समृद्ध बनाती है। इस संस्कृति को भाषा के विकास से जोड़ते हुए, हमारे संविधान के अनुच्छेद 351 में हिन्दी से जुड़े कुछ निर्देशों का उल्लेख किया गया है। उन निर्देशों के अनुसार, हिन्दी भाषा का प्रचार इस ढंग से करना है कि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्त्वों को व्यक्त कर सके। साथ ही हिन्दी, भारत की अन्य भाषाओं की विशेषताओं को आत्मसात करे।

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा दक्षिण के राज्यों में हिंदी की शिक्षा—दीक्षा में प्रभावी भूमिका निभा रहा है। सभा ने लगभग 20 हज़ार सक्रिय हिन्दी प्रचारकों का नेटवर्क विकसित किया है। सभा द्वारा अन्य भाषा-भाषियों के लिए हिन्दी की परीक्षा आयोजित की जाती है। वर्ष 2017-18 के दौरान, ऐसे परीक्षार्थियों की संख्या साढ़े आठ लाख से भी अधिक हो गयी है। इस सभा के प्रयासों से अब तक लगभग दो करोड़ छात्र लाभान्वित हो चुके हैं। सभा के ‘स्नातकोत्तर और शोध संस्थान’ द्वारा लगभग 6 हजार व्यक्तियों को पीएचडी, डी-लिट और अन्य प्रमाण पत्र प्रदान किए जा चुके हैं। सभा के ‘राष्ट्रीय हिन्दी शोध पुस्तकालय’ में हिन्दी साहित्य की एक लाख से भी अधिक पुस्तकें हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि आज इंटरनेट पर हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में नयी सामग्री का सृजन बहुत तेज गति से बढ़ रहा है। यह प्रयास होना चाहिए कि बुनियादी और उच्च-शिक्षा के लिए, उच्च-स्तर की सामग्री सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो। ऐसी सामग्री उपलब्ध होने से, भारतीय भाषाओं के माध्यम से मौलिक ज्ञान-विज्ञान, काम-काज और व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। हिन्दी सहित, सभी भारतीय भाषाओं में, ऐसी क्षमता विकसित करनी चाहिए, कि उनमें बायो-टेक्नालॉजी और इन्फॉर्मेशन-टेक्नालॉजी जैसे विषयों पर मौलिक काम किया जा सके। दूसरे देशों के लोगों में भारतीय भाषाओं के प्रति रुचि देखकर, मुझे बहुत प्रसन्नता होती है।

उन्होंने चेक रिपब्‍लिक की हाल की यात्रा का संस्मरण सुनाते हुए कहा, ‘मुझे वहां प्राग स्थित चाल्र्स विश्वविद्यालय के इंडोलॉजी विभाग में एक व्‍याख्‍यान देने के लिए आमंत्रित किया गया। उस विभाग के चार विद्यार्थियों को स्‍वागत समारोह में भाषण देना था। उन विदेशी विद्यार्थियों ने, अपना स्वागत-भाषण हिन्‍दी, संस्‍कृत, तमिल और बंगला में दिया। बहुत से लोगों ने मेरा अभिवादन भी हिन्‍दी में किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय भाषाओं की इस ‘सॉफ्ट पावर’ का सदुपयोग किया जाना चाहिए। अंग्रेज़ी में एक कहावत है, “Charity begins at home.” अपनी मातृभाषा के अलावा, अन्य भारतीय भाषाएं सीखकर हम भारतीय भाषाओं की शक्ति का बहुआयामी उपयोग कर सकेंगे।

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1 Response

  1. Ankit sharma says:

    Survachsan ke prakar

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