कोरोना ने बिगाड़ा परीक्षा की गणित
सरकार हकलान, विद्यार्थी परेशान
बीमार नेट से कैसे होगा ऑनलाइन इम्तहान
INN/New Delhi, @royret
सीबीएसई की 12वीं की परीक्षाएं रद्द कर दी गई है। प्रधान मंत्री ने खुद शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की और सभी सुझावों पर गम्भीरता से विचार करते हुए यह फैसला लिया है।
शिक्षा मंत्रालय परीक्षा कराने को लेकर विभिन्न राज्यों से उनके विचार और सुझाव भी मांगे थे। कई राज्यों से यह सुझाव आया कि इन परीक्षाओं को समय से करा लेना चाहिए और कुछ राज्य इसके विरोध में है। बिहार और उत्तर प्रदेश की सरकार ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि वह इन परीक्षाओं को समय रहते करा ले ताकि विद्यार्थियों को आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेजेस या विश्वविद्यालय में दाखिला पाने में किसी प्रकार की समस्या का सामना ना करना पड़े। वहीं दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि जब तक बच्चों को वैक्सीन ना दिला दी जाए या फिर हालात सामान्य ना हो जाए तब तक विद्यार्थियों को परीक्षा से दूर रखा जाए।
12वीं के परीक्षा के परिणाम वैकल्पिक प्रश्नों के उत्तर के आधार पर दिए जाएंगे। जिसकी समय सीमा निर्धारित होगी। परीक्षाएं आयोजित होनी चाहिए या नहीं या फिर किसी वैकल्पिक उपायों पर विचार करना चाहिए इसपर इंफोडिया की टीम ने एक सर्वेक्षण किया। हमारी टीम ने विद्यार्थियों, अभिभावक और शिक्षकों से बात की। इनमें से अधिकांश अभिभावकों, शिक्षकों और विद्यार्थियों का यही कहना था कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए परीक्षाएं टाल दी जानी चाहिए। वहीं कुछ छात्र इस बात को लेकर के भी चिंतित दिखे कि यदि परीक्षाएं टाल दी जाती हैं तो आगे उनके भविष्य में काफी कठिनाई आ सकती हैं। जैसे कि कुछ संस्थानों में दाखिले का फॉर्म और तारीख निकल चुकी है। अगर ऐसे में समय से इम्तिहान करा और रिजल्ट समय पर नहीं जारी किए जाते हैं तो वह डेट मिस हो जाएगा और अपने मनचाहे शिक्षण संस्थानों में उच्च शिक्षा के लिए दाखिले से वंचित रह जाएंगे।
इस संबंध में हमारी टीम ने विद्यार्थियों, अभिभावक और शिक्षकों से बात की। इनमें से अधिकांश अभिभावकों, शिक्षकों और विद्यार्थियों का यही कहना था कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए परीक्षाएं टाल दी जानी चाहिए। वहीं कुछ छात्र इस बात को लेकर के भी चिंतित दिखे कि यदि परीक्षाएं टाल दी जाती हैं तो आगे उनके भविष्य में काफी कठिनाई आ सकती हैं। जैसे कि कुछ संस्थानों में दाखिले का फॉर्म और तारीख निकल चुकी है। अगर ऐसे में समय से इम्तिहान करा और रिजल्ट समय पर नहीं जारी किए जाते हैं तो वह डेट मिस हो जाएगा और अपने मनचाहे शिक्षण संस्थानों में उच्च शिक्षा के लिए दाखिले से वंचित रह जाएंगे।
सीबीएसई के 12वीं के विद्यार्थियों से यह पूछा गया कि परीक्षा की तारीख को आगे बढ़ाना चाहिए या नहीं तो अधिकांश का जवाब यही था कोरोना महामारी को देखते हुए परीक्षा की तारीख को अभी आगे बढ़ा देना चाहिए। कोई भी विद्यार्थी या उनके अभिभावक मौजूदा हालात में रिस्क लेने को तैयार नहीं है। हालांकि इनमें से कई विद्यार्थियों का यह कहना था कि परीक्षा को टालने के बजाय उसके वैकल्पिक उपायों पर ध्यान देना चाहिए।
परीक्षा के आयोजन को लेकर हमारी टीम ने देश के विभिन्न हिस्सों में एक सर्वेक्षण किया। यह सर्वेक्षण देश के महानगरों के अलावा टीयर टू सिटी और ग्रामीण इलाकों के विद्यार्थियों से, उनके शिक्षकों और अभिभावकों की से किया गया।
इस सर्वेक्षण के अनुसार 70 से 75% ऐसे छात्र थे जो परीक्षा की तारीख को बढ़ाने का समर्थन कर रहे हैं। वहीं पांच से 5 से 7% ऐसे भी छात्र थे जिन्होंने कहा कि परीक्षा को करा लेना चाहिए। 10 से 15% ऐसे छात्र थे जिन्होंने वैकल्पिक व्यवस्था का समर्थन किया जिसमें ऑनलाइन परीक्षा लेना या इंटरनल एसेसमेंट की अनुशंसा की गई।
अगर परीक्षाएं ऑनलाइन ली जाती है तो उसमें नकल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में उन छात्रों को बहुत नुकसान होगा जो एक लंबे समय से 12वीं के बोर्ड के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। इसलिए सरकार को पारंपरिक तरीके से ही परीक्षाएं करानी चाहिए।
ऑनलाइन परीक्षा से मेधावी छात्रों को होगा नुकसान
आकांक्षा दास, विद्यार्थी, बिहार
ऑनलाइन परीक्षा और इंटरनल एसेसमेंट की अनुशंसा उन छात्रों ने की जो शहरी क्षेत्र में रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले विद्यार्थियों का यही कहना था कि परीक्षा देरी से हो लेकिन पारंपरिक तरीके से हो। इसके पीछे उनका यह तर्क था कि गांव में नेट और नेटवर्क की समस्या रहती है। बहुत से विद्यार्थियों के पास ना लैपटॉप है और न स्मार्टफोन की सुविधा ऐसे में ये विद्यार्थि ऑनलाइन परीक्षा देने में अक्षम हैं।
ऑनलाइन परीक्षा में टाइम मैनेजमेंट बड़ी समस्या
परीक्षाएं रद्द नहीं होनी चाहिए अगर परीक्षा की तारीख आगे बढ़ाई जाती है तो इससे हमारा उत्साह कम हो जाएगा। ऑनलाइन परीक्षा यदि कराई जाती है हम उसके लिए तैयार नहीं है क्योंकि हमें इसका अनुभव नहीं है और टाइम मैनेजमेंट कैसे कैसे कर पाएंगे। कीबोर्ड से लिखना और कलम से उत्तर पुस्तिका पर लिखना दोनों में बहुत अंतर होता है। विनय दिनेश, विद्यार्थि, तमिलनाडु
वही कुछ शहरी क्षेत्र के विद्यार्थियों का कहना यह भी था कि ऑनलाइन परीक्षा की प्रणाली इतनी सुदृढ नहीं है। न हीं उन्हें ऑनलाइन परीक्षा देने का अभ्यास है, ऑनलाइन परीक्षा में सबसे बड़ी समस्या टाइम मैनेजमेंट की होती है ऐसे में जरा सी भी चूक उनके प्राप्तांक पर असर डालेगी। कुछ ऐसे भी छात्र थे जिनका यह कहना था कि ऑनलाइन परीक्षा के माध्यम से नकल को नहीं रोका जा सकता और अगर ऐसा होता है तो इसका खामियाजा मेधावी छात्रों को भुगतना पड़ेगा।
जब अभिभावकों से इस बारे में पूछा गया तो शहरी क्षेत्र के 60% से ज्यादा अभिभावकों की यही राय थी कि परीक्षा को रद्द कर देना ही सही फैसला होगा। वही 20 से 25% ऐसे भी अभिभावक थे जो चाहते थे कि परीक्षा मौजूदा स्थिति में समय से करा लेनी चाहिए। इससे विद्यार्थियों का भविष्य बर्बाद नहीं होगा। इनमें से कई ऐसे अभिभावक भी थे जो ऑनलाइन परीक्षा का समर्थन कर रहे थे।
ऑनलाइन परीक्षा के नुकसान और फायदे दोनों
अगर सरकार ऑनलाइन परीक्षा कर आती है तो इससे फायदा यह होगा कि समय से रिजल्ट आएंगे और विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए विभिन्न शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेने में आसानी होगी। इसका एक नुकसान यह भी है कि ग्रामीण इलाकों में बहुत से ऐसे विद्यार्थी हैं जिनके पास में स्मार्टफोन, कंप्यूटर और नेट की सुविधा नहीं है। ऐसे में यदि परीक्षाएं ऑनलाइन कराई जाती हैं तो इन विद्यार्थियों का क्या होगा? नूतन वर्मा, अभिभावक,
ग्रामीण क्षेत्र के लगभग 70 से 80% ऐसे अभिभावक थे जिनका कहना था कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए परीक्षा को रद्द करना ही सही फैसला होगा। इनमें से अधिकांश अभिभावक ऑनलाइन परीक्षा का समर्थन नहीं कर रहे थे। इसके पीछे इनका यही तर्क था कि लॉकडाउन में कहीं भी इंटरनेट सेंटर खुला नहीं होगा और अधिकांश बच्चों के पास लैपटॉप और स्मार्टफोन की सुविधा नहीं है।
यही सवाल जब शिक्षकों से किया गया तो 50 से 60% ऐसे शिक्षक थे जो परीक्षा को रद्द करने के पक्ष में थे। इनमें से 10 से 15% ऐसे भी शिक्षक थे जिन्होंने ऑनलाइन परीक्षा और इंटरनल एसेसमेंट के आधार पर परीक्षा कराने का सुझाव दिया।
परीक्षा के लिए प्राइवेट स्कूल और कोचिंग को भी शामिल किया जाए
सीबीएसई की परीक्षा में देरी की वजह से 12 लाख विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। सरकार को यह परीक्षाएं समय से करा लेनी चाहिए। महामारी के इस दौर में सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी है कि सरकार निजी स्कूलों और कोचिंग सेंटरों को भी परीक्षा केंद्र बनाए और यहां सरकारी कर्मचारियों और शिक्षकों की नियुक्ति करें जो पर्यवेक्षण अधिकारी के रूप में तैनात रहे। निशा कुमारी, शिक्षक
ग्रामीण इलाके के शिक्षकों ने ऑनलाइन परीक्षा के सुझाव को सिरे से नकार दिया। वहीं कुछ शिक्षक ऐसे भी थे जिनका सुझाव था कि मौजूदा परिस्थिति में यदि परीक्षा कराना है तो सरकारी व निजी स्कूलों के अलावा कोचिंग सेंटर को भी इसमें जोड़ा जाना चाहिए। प्रत्येक परीक्षा केंद्र पर सरकारी शिक्षकों और सरकारी अधिकारियों की तैनाती की जा सके जो परीक्षा की निगरानी कर सकें। कुछ ने तो यह भी सुझाव दिया कि विद्यार्थियों को पहले वैक्सीन लगवा दिया जाए उसके बाद परीक्षा कराने पर विचार किया जाए।
गौरतलब है कि कुछ विद्यार्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका लगाई है कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए परीक्षा के तारीखों को टाल दिया जाए। जैसे ही स्थिति सामान्य होती है यह परीक्षाएं करा ली जाए। वहीं कुछ लोगों का यह भी सुझाव है कि यदि परीक्षाएं देर से होती हैं तो आने वाले दिनों में ऐसे विद्यार्थियों के लिए केंद्र व राज्य सरकार नौकरी के आवेदन में उम्र की सीमा में भी छूट दी जाए।
ऑनलाइन परीक्षा से मेधावी छात्रों को होगा नुकसान
अगर परीक्षाएं ऑनलाइन ली जाती है तो उसमें नकल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में उन छात्रों को बहुत नुकसान होगा जो एक लंबे समय से 12वीं के बोर्ड के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। इसलिए सरकार को पारंपरिक तरीके से ही परीक्षाएं करानी चाहिए।
अगर परीक्षाएं समय से ना कराई जाएं तो इससे विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटक सकता है। कई शिक्षण संस्थानों ने अपने दाखिले का फॉर्म जारी कर दिया है। अब ऐसे में समय से परीक्षा कराकर उनके समय से ना की जाए।