बची गाढ़ी कमाई के सहारे या फिर कर्ज लेकर कट रही जिंदगी

प्रवासी मजदूरों का हाल

अधरझूल में प्रवासी कामगारों का भविष्य

इस बार मनरेगा के तहत नहीं मिल पा रहा काम

Ritesh Roy, INN/Bihar, @royret

अधरझूल में प्रवासी कामगारों का भविष्य

कोरोना की दूसरी लहर ने इस बार भी कमजोर और गरीब तबके के लोगों को परेशान किया है।  पिछली बार लॉकडाउन में अपने प्रदेश को छोड़कर बाहर काम की तलाश में गए लोग उसी प्रदेश में फंस गए थे। वहां बिना काम किए उन्हें बीमारी, तंगी और भुखमरी का सामना करना पड़ा। जब लॉकडाउन खुला तो ये लोग अपने-अपने प्रदेशों में लौट आए। ऐसे मजदूरों के लिए सरकार की ओर से मनरेगा के तहत काम दिया गया और किसी तरह इन लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब हुई। इस बार पूरे देश में एक साथ लॉकडाउन नहीं लगा। दिल्ली, मुंबई, गुजरात जैसे प्रदेशों में काम करने वाले मजदूर वहां बढ़ती महामारी को देखकर स्वतः अपने प्रदेश वापस लौट आए और जब वे अपने प्रदेश लौटे तो वहां भी लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई।

ऐसे में इन लोगों के लिए दो वक्त की रोटी कमाना और अपने साथ-साथ अपने परिवार का भरण पोषण करना एक बहुत बड़ी चुनौती हो गई। बिहार से अधिकांश लोग दिल्ली, मुंबई, गुजरात, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु जैसे प्रदेशों में काम के लिए जाते हैं। इस बार जब वहां के हालात बिगड़ने लगे तो इस स्थिति को भांपते हुए ये मजदूर अपने-अपने शहरों में वापस लौट आए। लेकिन यहां भी इनके लिए दो जून की रोटी कमा पाना पहाड़ तोड़ने जैसा हो गया।

पिछली बार इन लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला लेकिन इस बार स्थिति ऐसी नहीं। इस बार जो लोग लौटे हैं उन्हें अपनी जमा पूंजी खर्च कर या फिर कर्ज लेकर गुजर बसर करना पड़ रहा है।

बिहार के बेगूसराय जिले के बरौनी गांव के शोकहारा पंचायत निवासी नसीम का कहना है कि वह दिल्ली में मजदूरी का काम करते थे। 1 महीने में वह 8 से 10 हजार रुपए कमा लेते थे। लेकिन दिल्ली में जब लॉकडाउन लगा तो वह अपने घर वापस आ गए। यहां उनके पास रोजगार का कोई साधन नहीं है, जो जमा पूंजी थी उसी में किसी तरह गुजारा चल रहा है। अब बस इंतजार इस बात का है कि कब स्थिति सुधरेगी और फिर से वह काम पर वापस जा सकेंगे।

पेंटिंग का काम करने वाले ब्रिज मोहन शर्मा वहां रोज 400 से 500 रुपए कमा लेते थे। लेकिन दिल्ली में लॉक डाउन होने के बाद वह वापस अपने घर चले आए यहां उनके पास कमाई का कोई साधन नहीं है। कर्ज लेकर अपना घर चला रहे हैं।

नसीम और बृजमोहन शर्मा जैसे यहां कई लोग हैं,  जो बाहर के प्रदेश में काम करते थे और महामारी बढ़ने की वजह से अपने घर वापस आ गए। जिनके पास अपनी जमा पूंजी थी वह उसे अपना काम चला रहे हैं और जिनके पास जमा पूंजी नहीं है वह कर्ज लेकर गुजारा कर रहे हैं।

जेवर, जमीन एवं घर गिरवी रखने की नौबत

 

मेरे वार्ड में आठ पंचायतें आती हैं। मेरा घर शोकहारा पंचायत में पड़ता है। मेरे पंचायत में करीब 200 ऐसे लोग हैं जो कि बिहार में लॉकडाउन लगने से पहले घर वापस आ गए थे। इन लोगों को मनरेगा के तहत कोई भी काम नहीं मिला है। हालांकि कुछ ऐसे लोग हैं जो कि फसल की कटाई, पटवन, भवन निर्माण आदि कार्य में लगकर कुछ पैसा कमा लेते थे लेकिन जब से लॉकडाउन लगा है तब से यह भी संभव नहीं है। कुछ लोग तो अपना जेवर, जमीन और घर गिरवी रख कर के दो वक्त की रोटी खा रहे हैं। मोहम्मद सिकंदर अली
, जिला पार्षद, तेघरा प्रखंड, बरोनी

2371 में 23 लोगों को मिला मनरेगा के तहत काम

तेघरा प्रखंड के बीडीओ संदीप कुमार पांडे का कहना है कि बरौनी जंक्शन से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक करीब 2371  इस बार लॉकडाउन से पहले घर वापस आ गए। इनमें से 23 ऐसे लोग हैं जिन्हें मनरेगा के तहत काम किया गया है। पिछली बार लॉकडाउन के समय यह संख्या ज्यादा थी लेकिन इस बार काम नहीं होने और सख्त लॉकडाउन लगने के कारण काफी लोगों को रोजगार मुहैया नहीं कराया जा सका है।

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