सेवन ‘सी’ से बदलेगा भारत
By- INN/NewDelhi, @Infodeaofficial
वैश्विक संस्थाओं की दृष्टि में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व में सर्वाधिक संभावना वाली जतायी जा रही है। इस संभावना का आधार अर्थव्यवस्था, आधारभूत ढांचा, युवा मानव संसाधन व अन्य कारकों में इधर हाल के वर्षों में आयी निरंतरता व संवृद्धि है। आर्थिक मोर्चे पर इस सकारात्मक बदलाव की संकल्पना का आधार सेवन ‘सी’ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संकल्पना को व्यक्त करते हुए बताया कि भारत में गतिशीलता के भविष्य की संकल्पना सात ‘सी’- कॉमन, कनेक्टेड, कनवीनिएंट, कनजेशन फ्री, चार्जड, क्लीन एवं कटिंग एज़ पर आधारित है।
हाल ही नीति आयोग की ओर से नई दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय वैश्विक गतिशीलता सम्मेलन में दुनियाभर के नेताओं, अर्थशास्त्रियों व विश्व के अग्रणी औद्योगिक संस्थानों के प्रतिनिधियों ने अर्थव्यवस्था की गतिशीलता पर चर्चा की। सम्मेलन उद्घाटन करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गतिशीलता अर्थव्यवस्था को चलाये रखने वाला एक प्रमुख कारक है। यह आर्थिक विकास को बढ़ा सकती है और रोजगार के अवसरों का सृजन कर सकती है। भारत की अर्थव्यवस्था का रूपांतरण इस सेवन ‘सी’ के आधार पर हो रहा है।
दरअसल, वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज, ब्रूकिंग्स आदि ने अपनी कई रिपोर्टों में भारत की वर्तमान संवृद्धि दर को इसकी अर्थव्यस्था को सर्वाधिक तेजी से विकसित होने वाली संभावना व्यक्त की है।
विदित हो कि कांग्रेस नीत यूपीए के शासन में विकास के अलग-अलग सूचकांकों में निचले पायदान पर रहने वाले भारत ने भाजपा नीत एनडीए सरकार गठन के बाद बीते चार साल में लंबी छलांग लगायी है। विश्व बैंक के ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स’ से लेकर ‘वर्ड्ई इकोनॉमिक फोरम’ के प्रतिस्पर्धा सूचकांक सहित करीब दर्जन भर मानकों पर भारत के प्रदर्शन में सुधार आया है। यही वजह है कि वैश्विक मंच पर भारतीय अर्थव्यवस्था की साख बढ़ी है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों ने समय-समय पर सरकार के कार्यक्रमों की सराहना भी की है।
प्रश्न उठता है कि वैश्विक स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति दृष्टिकोण में यह सकारात्मक बदलाव कैसे आया? इसका जवाब प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दी गयी इस जानकारी में है। मोदी ने कहा, ‘हमारे कस्बे एवं शहर गतिमान हैं। हम 100 स्मॉर्ट शहरों का निर्माण कर रहे हैं। हमारा बुनियादी ढांचा गतिमान है। हम सड़कों, हवाई अड्डों, रेल की पटरियों और बंदरगाहों का निर्माण तेज गति से कर रहे हैं। वस्तु एवं सेवा कर ने हमें हमारी आपूर्ति प्रणाली और भंडार गृहों के तंत्र को सुव्यवस्थित बनाने में मदद की है। हमने भारत को ऐसे विकसित किया है कि जहां व्यवसाय करना सरल है।’
मोदी की इस बात की पुष्टि इससे होती है कि 2014 से 2018 के दौरान लगभग एक दर्जन वैश्विक सूचकांकों पर भारत की स्थिति में सुधार आया है। मसलन, विश्व बैंक की ‘ईज ऑफ डूइंग इंडेक्स’ पर भारत की रैंकिंग पहले 142 पर थी जो अब 42 पायदान सुधरकर 100 हो गयी है। इसका मतलब यह है कि देश में कारोबार शुरू करने की प्रक्रिया पहले से सरल हो गयी है।
यह देश की गतिशीलता की स्थिति का आंकलन करने के लिए प्रमुख तत्व है। गतिशीलता अर्थव्यवस्था के लिये एक अहम कारक है। बेहतर गतिशीलता परिवहन और यात्रा के ऊपर दबाव को कम कर सकती है और अर्थव्यवस्था को गति दे सकती है। यह पहले से ही रोजगार का एक बड़ा माध्यम है और अगली पीढ़ी के रोजगार के अवसरों का सृजन कर सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार पीएस विजयराघवन कहते हैं, ‘अर्थव्यवस्था मजबूत तो हो रही है। विकास के अलग-अलग सूचकांकों पर भारत की स्थिति में सुधार आने के साथ-साथ रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत की रेटिंग बढ़ायी है। उदाहरण के लिए प्रतिष्ठित रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 13 साल बाद भारत की बीबीए3 रेटिंग को सुधार कर बीबीए2 किया है। इतना ही नहीं प्रतिष्ठित वैश्विक एजेंसियों ने सरकार के कार्यक्रमों की प्रशंसा भी की है। विश्व बैंक ने जहां ‘आधार’ और जलवायु परिवर्तन पर एक्शन प्लान की तारीफ की, वहीं इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने भारत की एलईडी उजाला योजना की तारीफ की। यह कहीं न कहीं भारतीय अर्थव्यवस्था की गतिशीलता का सूचक है।’
भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार सर्विस सेक्टर और कृषि क्षेत्र में मजबूती की वजह से देश में घरेलू खपत बढ़ रही है। लगातार तीसरे वर्ष मानसून सामान्य रहने से कृषि उत्पादन में वृद्धि रहने की उम्मीद है। आरबीआई के अनुसार घरेलू एवं निर्यात स्तर पर नए कारोबारी ऑर्डर मिलने से विनिर्माण गतिविधियों में तेजी रही। इसके अलावा क्षमता उपयोग में इजाफा और बचे हुए माल का स्टॉक कम होने से भी विनिर्माण गतिविधियों को समर्थन मिला।
बिजनेस एंड पॉलिटिकल डेली के वरिष्ठ पत्रकार अशोक सिंह राजपूत कहते हैं, ‘अर्थव्यवस्था की संवृद्धि दर संतोषजनक है। विशेषकर नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद आयी अफरातफरी और मंदी के बाद फिर से वर्तमान वित्त वर्ष में संवृद्धि दर रिकार्ड 8.2 प्रतिशत पहुंच गयी है। हालांकि अर्थव्यवस्था की मजबूती का फायदा सामान्य नागरिकों तक कितना और कहां पहुंच रहा है, इसकी पड़ताल होनी चाहिए।’